ApnaCg@जंगल विभाग अपने भ्रस्ट्राचार रूपी कुकृत्यों को छुपाने सूचना के अधिकार अधिनियम का कैसे उड़ा रहें हैं मजाक?
अपने भ्रस्ट्राचार रूपी कुकृत्यों को छुपाने वनमंडल अधिकारी केशकाल ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की उड़ाई धज्जियां, वन विभाग को समझ बैठा प्राइवेट लिमिटेड धारा 2(F)का उल्लेख कर प्रार्थी के आवेदन को किया बापस।
रायपुर@अपना छत्तीसगढ़ – सूचना का अधिकार अधिनियम भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता रहा है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
जम्मू एवं काश्मीर मे यह जम्मू एवं काश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लागू है।
सूचना का अधिकार अधिनियम
संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक भाग है। अनुच्छेद 19(1) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने तथा अभिव्यक्ति का अधिकार है।1976 में सर्वोच्च न्यायालय ने “राज नारायण विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार” मामले में कहा था कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो न जानें,इसी कारण सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 में छुपा है। इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि भारत एक लोकतंत्र है।लोग मालिक हैं। इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं, क्या कर रहीं हैं? तथा प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है।यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है(बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में)।नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है। इन तीन सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने रखा कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा हैं।अब सबाल यहा भी उठाता हैं कि यदि सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है?बता दें कि ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप किसी सरकारी विभाग में जाकर किसी अधिकारी से कहते हैं, “सूचना का अधिकार मेरा मौलिक अधिकार है, और मैं इस देश का मालिक हूँ।इसलिए मुझे आप कृपया अपनी फाइलें दिखायिए”, वह ऐसा नहीं करेगा। तथा संभवतः वह आपको अपने कमरे से निकाल या भगा देगा इसलिए हमें एक ऐसे तंत्र अथवा प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसके तहत हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकें। सूचना का अधिकार 2005, जो 13 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ हमें वह तंत्र प्रदान करता है। सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?तो जान ले कि सूचना का अधिकार 2005 प्रत्येक नागरिक को शक्ति प्रदान करता है कि वो:ए हैं कि
किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले,किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे।किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे। किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले।सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?बताना लाजमी होगा कि इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य में वतर्मान समय मे प्रशासन हो या सरकार हो हर जगह दरकिनार और बेकार साबित हो रहा का जन सूचना अधिकार ऐसे में सवाल यह उठता है की जायें भी तो कहां जायें और किसकी चौखट पर अर्जी लगायें न कोई अफसर है न कोई हुक्मरान अपनी मर्जी अपना काम..छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इससे इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इसकी महत्ता को लेकर भी लोगों में अब कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही है। इसका कारण जिले के अधिकारियों द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के प्रति उदासीनता व लापरवाही मुख्य वजह है। इसी कारण जिले में सूचना अधिकार अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। चाहे खान विभाग, प्रदूषण विभाग,वन विभाग या पंचायती विभाग विकास से जुड़े महकमें हों अथवा निर्माण कार्य से जुड़े विभाग या फिर स्वयं कलेक्ट्रेट ही क्यों न हो? सूचना अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाने में कोई भी पीछे नहीं है। सूचना अधिकार अधिनियम के प्रति इन अधिकारियों में कोई डर-भय नहीं रह गया है।
ऐसे उड़ाई वन मंडल अधिकारी केशकाल ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धज्जियां
बताते दे कि स्वतंत्र पत्रकार मनोज सिंह ठाकुर जिला गरियाबंद निवासी द्वारा केंद्रीय सूचना आयोग नई दिल्ली व राज्य सूचना आयोग छत्तीसगढ़ द्वारा एक ही आवेदन में एक से अधिक वित्तीय वर्ष की जानकारी व एक से अधिक विषयो पर जानकारी मांगने की प्रथा को उचित नही माना है।साँथ ही एक एक आवेदन में एक विषय बिंदु की जानकारी अधिक की जानकारी मांगने की प्रथा को गलत ठहराया हैं।साथ ही मासिक प्रश्नावली पर आधारित आवेदन जिसकी सूचना प्रदान करने के लिए जनसूचना अधिकारी बाध्य नहीं होता है जैसे कई प्रकरण में फैसला सुनाया हैं जिसके उदाहरण के तौर पर अनमोल गनपत विरुद्ध राजेन्द्र 2008 (1) आई. डी. 298 नई दिल्ली)साथ ही आपके द्वारा एक ही आवेदन में विभिन्न पांच बिंदुओ एवं विषयों पर जानकारी चाही गई है जबकि सूचना के अधिक के तहत एक ही आवेदन में अनेक सूचनाएं मांगने की प्रथा को केंद्रीय सूचना आयोग नई दिल्ली द्वारा उचित नहीं माना गया है।टी. के. राय बनाम केन्द्रीय जनसूचना अधिकारी सी.आई.सी. / ए.ए./ए./ 2006-2012 जैसे कई निर्णय को मनोज सिंह द्वारा संज्ञान में रखकर एक विषय व एक वित्तीय वर्ष की जानकारी हेतु आवेदक मनोज सिंह ठाकुर द्वारा कैम्पा मद से व्यय की गई राशि व कराए गए कार्यो की सूची सहित टेंडर की निविदा जारी करने के सम्बंध में वर्ष 2019-20 से जारी वित्तीय वर्ष तक पृथक पृथक 25 व युक्ति युक्त आवेदन मुख्य वन संरक्षक कांकेर व्रत कांकेर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था संबंधित जानकारी वनमंडल केशकाल की होने के कारण मुख्य वन संरक्षक कांकेर द्वारा विधिवत सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6(3)को संज्ञान में लेकर अपने कार्यालय के पत्र क्रमांक 7044 दिनांक25-08-2022 वन मंडल अधिकारी केशकाल अंतरण किया था।जिस पर वनमंडल अधिकारी केशकाल द्वारा अपने कैम्पा मद से कराए गए कार्यो की गोपनीयता बरकार रखते हुए अपने कार्यालय के पत्र क्रमांक -6673 दिनांक 20-09-2022 में यहां आदेश पारित करते हुए आवेदक मनोज सिंह ठाकुर को आवेदन की मूल प्रति डाक के माध्यम से बापस भेज दिया हैं कि आपके द्वारा एक साथ प्रस्तुत 25 आवेदन के विषय वस्तु में संबंधित जानकारी की संकलन हेतु अलग-अलग नस्तियों में संकलित करना पड़ेगा। वनमंडल केशकाल में उपलब्ध सीमित मानव संसाधन से आपके द्वारा प्रस्तुत समस्त 25 आवेदन का एक साथ जानकारी दिये जाने से अत्यंत सीमित मानव संसाधन पर विपरीत असर पड़ेगा तथा समस्त जानकारी को संकलित करने में अत्यधिक समय लगेगा तथा सूचना के अधिकार की धारा 6 के तहत निर्धारित 30 दिवस में उपरोक्त जानकारी का संकलन किया जाना संभव नहीं होगा। अतः आपसे अनुरोध है कि आप या तो 25 आवेदन में से अपनी प्राथमिकता तय करते हुए किन्हीं एक या दो आवेदनों पर वांछित जानकारी आपको प्रदाय की जा सकती है तथा आपसे अनुरोध है कि आप दिनांक 13/10/2022-को कार्यालयीन समय में सायं 01.00 बजे इस कार्यालय में उपस्थित होकर आपके द्वारा वांछित जानकारी से संबंधित नस्तियों का अवलोकन उपरांत संबंधित नस्ती 50 पृष्ठों तक उपलब्ध करायी जा सकती है।इस संबंध में माननीय केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित निर्णय के.पी.नीमात वि. भारत संचार निगम लि… 2507/IC (A)/2008 Dated 04.06.2008 अनुसार लोकर सूचना अधिकारी से ये उपेक्षा नहीं की जायेगी कि वह सूचनाएं एकत्रित कर और उन्हें संयाजित कर प्रार्थी की उपेक्षा अनुसार या उसके निर्धारित प्रारूप में उसे उपलब्ध कराए। अधिनियम की धारा 7 (1) के अंतर्गत सूचना देने से इंकार किया गया, जिसे उचित एवं तर्कसंगत ठहराया गया। साँथ ही अपने पत्र में वनमंडल अधिकारी द्वारा जानकारी देने से बचने के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 2(F) की व्याख्या की गई हैं। जिसमे उन्होंने उदाहरण देते हुए लिखा हैं कि अरुण तिवारी वि. वेस्टर्न कोल्ड फिल्ड लि. CIC/AT/A/2008 / 01161 Dated 7.01.2009 के अनुसार जहाँ जानकारी दी जाने हेतु अत्यधिक समय और धन का अपव्यय होता है और जानकारी प्राप्त की जाना साधारण प्रक्रिया के अंतर्गत संभव नहीं है।प्रार्थी द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 2 (F) के अंतर्गत परिभाषित सूचना के परे जिज्ञसाओं पर जानकारी चाही गई व्यक्ति को उसकी मनमर्जी करने और उस हेतु लोक प्राधिकारी को अनावश्यक श्रम एवं धन व्यय करने के लिए निर्देशित किया जाना इस अधिनियम का ध्येय नहीं है। सूचना के अंतर्गत जानकारी न होने पर और ऐसी जिज्ञासाएं प्रश्नगत किये जाने पर अधिनियम की धारा 7(9) के प्रावधान आकर्षित होते हैं।
जानकारी उपलब्ध कराने से बचने वनमण्डल अधिकारी केशकाल ने बनाया सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(9)को भी मजाक
बताते चले कि वनमंडल अधिकारी केशकाल ने अपने कार्यालय के पत्र क्रमांक -6673 दिनांक 20-09-2022 में अपने आदेश में धारा 7(9) का उल्लेख कर जानकारी उपलब्ध कराने से बचने का प्रयास किया गया हैं जबकि सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 7(9) में यहां प्रवधान हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 6(1)के अधीन तथा धारा 7 की उप धारा(1) के अधीन और उप धारा (5)के अधीन फीस युक्तियुक्त होगी जो अनुरोधकर्ता गरीबी रेखा से नीचे मान्य किया गया हैं उससे फीस नही ली जायेगी।जबकिं प्रार्थी मनोज सिंह ठाकुर द्वारा अपने आवेदन के बिंदु क्रमांक-8 में स्पष्ट लिखा था कि मैं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन नही करता हूँ साथ ही आपके द्वारा निर्धारित शुल्क का भुगतान करने सक्षम और बाध्य हूं।लेकिन वनमंडल अधिकारी ने धारा 7(5) को जानबूझकर अनदेखा किया किया हैं जिसमे प्रवधान हैं कि संबंधित सक्षम प्राधिकारी सूचना की प्रदाय में लागत खर्चे के बारे में अवधारित रकम की गणना का ब्यौरा और फीस जो विहित है वह जमा करने का अनुरोध आवेदक को इत्तिला देते हुए करेगा और तीस दिन में निपटारा करने की अवधि के आकलन में ऐसी इत्तिला भेजी जाने की अवधि तथा फीस जमा होने की अवधि की गणना को निकाल दिया जायेगा अर्थात् आकलन में गणना में नहीं लिया जायेगा।अपवाद के सिवाए सूचना रोकने का लोक प्राधिकारी को अधिकार नहीं यह धारा लोक प्राधिकारी कोई भी सूचना को रोकने के संबंध में कोई विवेक प्रदान नहीं करती निवाए इस बात के कि मामला किसी अपवाद के तहत हो। अधिनियम की धारा 7 (9) का प्रावधान लोक प्राधिकारी को मात्र यह विवेक प्रदान करता है कि वह जिस प्रारूप में सूचना चाही गई उस प्रारूप से भिन्न प्रारूप में सूचना प्रावधानित करे।और जो आवेदक ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करता हो उसे 50 पन्नो तक कि जानकारी बिना शुल्क के प्रदान की जावे।यदि आवेदक गरीबी रेखा में जीवन यापन नही करता हो तो उसे जिस प्रारूप में सूचना चाही गई है वह लोक प्राधिकारी के स्त्रोतों के अनुपात में हो उसे दी जाएगी ऐसा ही प्रकरण में केरल उच्च न्यायालय के निम्न न्याय दृष्टांत पर निर्भरता व्यक्त की गई–ट्रीसा ईरिस बनाम सेन्ट्रल पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर (रिट याचिका (सी)) क्रमांक6532/2006,उमंग गुप्ता आदि बनाम नेशनल ग्रीन टिब्यूनल, सी.आई.सी. / एस.ए./ सी / 2014/000079 एवं अन्य कई आवेदन, कॉमन आदेश के द्वारा निराकृत निर्णय दिनांक 31.12.2014 को निर्णय ढिया था।
क्या हैं सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 2(F) में प्रवधान जिनसे वनमंडल अधिकारी द्वारा किया गया सूचना ना देने का प्रयास?
बता दे कि सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 2 में सूचना की परिभाषा दी गई हैं जिसके उपखण्ड (F) में प्रवधान हैं कि”सूचना” से किसी इलेक्ट्रानिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज,ज्ञापन,ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश,लागबुक,संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र,नमूने,माडल,आंकड़ों संबंधी सामग्री और किसी प्राइवेट निकाय से संबंधित ऐसी सूचना सहित, जिस तक तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहुंच हो सकती है, किसी रूप में कोई सामग्री अभिप्रेत है।किंतु वनमंडल अधिकार केशकाल द्वारा अपने विभाग वन विभाग को प्राइवेट संस्था समझ बैठे हैं वो यहा भूल गए हैं कि वन विभाग वित्त पोषित हैं और उनके विभाग में चलने वाली योजना सरकारी पैसे से चलती हैं।जबकिं सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 2 उप खंड (झ) में स्पष्ट प्रवधान हैं कि ऐसा निकाय है, जो केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन नियंत्रणाधीन या उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा वित्तपोषित है।कोई ऐसा गैर-सरकारी संगठन है जो समुचित सरकार,द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा वित्तपोषित है।
अभिलेख” में निम्नलिखित सम्मिलित है-
कोई दस्तावेज, पाण्डुलिपि और फाइल,किसी दस्तावेज की कोई माइक्रोफिल्म माइक्रोफिशे और प्रतिकृति प्रति ऐसी माइक्रोफिल्म में सन्निविष्ट प्रतिबिम्ब या प्रतिबिम्बों का पुनरुत्पादन चाहे वर्धित रूप में हो या न होऔर
किसी कम्प्यूटर द्वारा या किसी अन्य युक्ति द्वारा उत्पादित कोई अन्य सामग्री की जानकारी कोई भी भारतीय नागरिक सूचना के अधिकार के तहत जानकारी प्राप्त कर सकता हैं।
छत्तीसगढ़ वन विभाग में हुआ था बड़ा टेंडर घोटाला,9 अफसर पाए गए थे दोषी, नेता प्रतिपक्ष के सवाल पर वन मंत्री ने दिया था जवाब, क्या वनमंडल केशकाल मे हुआ हैं बड़ा खेला?
बताते चले कि विधानसभा छत्तीसगढ़ में प्रश्नकाल के दौरान वन विभाग के टेंडर घोटाले को लेकर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सवाल किया था वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने बताया था कि धमतरी,गरियाबंद,मुंगेली के लोरमी,जगदलपुर,बीजापुर में हुए टेंडर घोटाले की जांच की गई है। इसमें 37 में से 33 टेंडर में अनियमितता पाई गई है। अनियमितता के लिए सात भारतीय वन सेवा (आइएफएस) और तीन राज्य वन सेवा के अधिकारियों को दोषी पाया गया है। सभी अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।15 दिन में जवाब मिलने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। टेंडर घोटाले की जांच अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने की हैं।नेता प्रतिपक्ष कौशिक ने कहा था कि वन विभाग के अधिकारियों ने सामग्री की खरीदी के लिए टेंडर किया था। यह प्रश्न वर्ष 2020 के विधानसभा सत्र के दौरान भी पूछा गया था और आज एक बार प्रश्न पूछा गया है। कौशिक ने पूछा था कि अधिकारियों के खिलाफ कब तक कार्रवाई होगी। मंत्री अकबर ने बताया कि 15 दिन में जवाब आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। कौशिक ने कहा था कि यह सिर्फ चार जिले का मामला है। बलरामपुर जिले में भी एक मामला आया है। ऐसे ही मामले पूरे प्रदेश भर में देखने को मिलेंगे। सामाग्री खरीदी में लगभग हर जगह अनियमितताएं पाई जा रही है। भंडार क्रय नियम का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। प्रदेश सरकार दोषियों पर कार्यवाही न करके उनको संरक्षण दे रही है।
इन अधिकारियों को पाया गया था दोषी
गिधवा-परसदा,चीचा, फूटहामूड़ा और अचानकमार
भारतीय वन सेवा के नायर विष्णुराज नरेंद्रन,आयुष जैन, अमिताभ बाजपाई, स्टाइलो मंडावी, केएल निर्मलकर, विजया विनोद कुर्रे और अशोक कुमार पटेल को दोषी पाया गया। वहीं राज्य वन सेवा के तीन अफसरों में एनके शर्मा, डीके साहू और डीके मेहर को नोटिस जारी किया गया है।धमतरी में सीमेंट खरीदी,शहर प्रोसेसिंग संयंत्र, जेसीबी किराया, रेत खरीदी, गिट्टी क्रेशर से खरीदी, रेलिंग निर्माण, चाय-नाश्ता का टेंडर में गड़बड़ी हुई। गरियाबंद में सीमेंट, छड़, गिट्टी, मुरम और रेती खरीदी, पैलेट खरीदी, ट्रैप कैमरा खरीदी, जीपीएस डिवाइस खरीदी, रेंज फाइडर खरीदी, कंपास सामग्री खरीदी, एंड्रायड मोबाइल खरीदी, एल्केलाइन एए बैटरी, रोड रोलर, पावर रोलर और पानी टैंकर के किराए का टेंडर, डार्टगन खरीदी में गड़बड़ी पाई गई। लोरमी में फ्लाइ एश ब्रिक्स, ट्रैप कैमरा खरीदी में गड़बड़ी मिली। वहीं, जगदलपुर में रेत,सीमेंट,छड़ खरीदी,फ्लोर टाइल की खरीदी, पावर चेन सा,आरा,कनासी आयल चाक का टेंडर फर्जी पाया गया था सूचना के अधिकार के तहत मनोज सिंह ठाकुर ने भी सूचना के अधिकार के तहत कैम्पा मद के कार्यो टेंडर सहित अलग अलग आवेदन मे जानकारी मांगी हैं सवाल यहा हैं कि आखिर वन मंडल अधिकारी केशकाल सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाते हुए आख्रिर जानकारी देने से बचने का क्यों प्रयास कर रहे हैं क्या उन्होंने भी कैम्पा मद के केश से ऐश किया हैं अब तो जानकारी आने पर ही सारा खुलासा होगा जिसके लिए मनोज सिंह ठाकुर ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 19(1)के तहत मुख्य वन संरक्षक कांकेर व्रत कांकेर के समक्ष प्रथम अपील पत्र दाखिल किया हैं।
जानकारी क्या इस लिए छुपाई जा रही हैं?क्या उड़ाई जा चुकी हैं भंडार क्रय अधिनियम की धज्जियां? खेला जा रहा हैं कमीशन का खेल?
बताते चले कि अविभाजित मध्यप्रदेश में आज से 23 साल पहले मप्र भंडार क्रय अधिनियम के तहत शासकीय खरीदी शासकीय कार्यालयों द्वारा खरीदे जाने का प्रावधान था।उक्त अधिनियम छत्तीसगढ़ राज्य के बनने के बाद आज भी लागू रहा।लेकिन छत्तीसगढ़ भण्डार क्रय नियम 2002 में संशोधन करते हुए दिनांक 04 अप्रेल 2017 को तत्कालीन रमन सरकार के कार्यकाल में सभी विभागों को यह निर्देश दिए थे कि कार्यालयों के उपयोग के लिए वस्तुओं की खरीदी के लिए सबसे पहले डीजीएसएण्डडी की वेबसाइट जेम(गवर्नमेंट ई-मार्केट प्लेस) का अवलोकन कर लिया जाए। राज्य सरकार के वाणिज्य और उद्योग विभाग ने यहां मंत्रालय (महानदी भवन) से इसके लिए भण्डार क्रय नियम 2002 में संशोधन की अधिसूचना जारी कर दी थी।उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की जेम वेबसाइट में 40 हजार से ज्यादा पंजीकृत उपयोगकर्ता,31 हजार से ज्यादा प्रोडक्ट और 17 प्रकार की सेवाएं शामिल हैं। वाणिज्य और उद्योग विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस वेबसाइट के उपयोग से सरकारी खरीदी में परम्परागत टेंडर विधि की तुलना में वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी,क्योंकि इसमें देश के सभी राज्यों के विक्रेताओं का पंजीयन हो रहा है।जेम के उपयोग के लिए वाणिज्य और उद्योग विभाग द्वारा भण्डार क्रय नियम 2002 में संशोधन के लिए जारी अधिसूचना में बताया गया है कि इस नियम के परिशिष्ट एक में शामिल ऐसी वस्तुएं जिनकी दरें और विशिष्टताएं भारत सरकार के डीजीएसएण्डडी की जेम वेबसाइट में उपलब्ध हैं,उनके लिए छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी) द्वारा नया रेट कॉन्ट्रेक्ट नहीं किया जाएगा। लेकिन सरकारी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों,निगमों, मंडलों,जिला और जनपद पंचायतों और नगरीय निकायों में इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी सामग्री की खरीदी से संबंधित नीति,नियम और प्रक्रिया तथा आवश्यक होने पर दर निर्धारण कार्य राज्य सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाएगा। इसके लिए सामग्री की सूची का निर्धारण भी इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाएगा।
क्या कहता है भण्डार क्रय नियम
भण्डार क्रय नियम 2002 के नियम 4.3.1 की अंतिम पंक्ति में पांच हजार रूपए अंकित है,जिसे बढ़ाकर दस हजार रूपए कर दिया गया है।नियम 4.3.2 की द्वितीय पंक्ति में रूपए 5001 से रूपए 50 हजार अंकित है,जिसे बढ़ाकर रूपए 10001 से एक लाख रूपए कर दिया गया है।
परन्तु ऐसी वस्तुएं जिनकी दर और जिनकी विशेषताएं भारत सरकार की जेम वेबसाइट में उपलब्ध हैं,उनकी खरीदी क्रेता विभाग द्वारा अपनी आवश्यकता के अनुसार सीधे जेम वेबसाइट के माध्यम से की जा सकेगी, लेकिन ऐसी खरीदी के लिए क्रेता विभाग इस वेबसाइट में संबंधित सामग्री के तकनीकी स्पेशिफिकेशन का परीक्षण,विक्रेता की साख और न्यूनतम मूल्य (एल-वन) का निर्धारण स्वयं करेगा। नियम 4.3.3 में जहां निविदा का अनुमानित मूल्य 50001 से रूपए दो लाख लिखा है, उसे बढ़ाकर 100001 से दो लाख कर दिया गया है, लेकिन नियम 4.3.3 के बाद यह संशोधन किया गया है कि ऐसी वस्तुएं जिनकी दर और विशेषताएं भारत सरकार की जेम वेबसाइट में उपलब्ध हैं, उनकी खरीदी खुली निविदा पद्धति या इस वेबसाइट में उपलब्ध ई-बिडिंग अथवा रिवर्स ऑक्शन की प्रक्रिया से आवश्यकता के अनुसार की जा सकेगी।अब सवाल यहा उठता हैं कि वन मंडल अधिकारी केशकाल द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां क्या इसी लिए उड़ाई जा रही हैं की उनके विभाग में कोई बड़ा खेला हो गया हैं?क्या उन्हें डर हो गया हैं कि कंही उनके द्वारा किए गए भ्रष्ट्राचार रूपी कुकृत्य कंही उजागर ना हो जाए?
छत्तीसगढ़ में कैम्पा मद की लूट की कहानी आज की नही बहुत हैं पुरानी, जिसको लेकर वर्ष 2015 में वरिष्ठ पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में किया था याचिका दायर
छत्तीसगढ़ में भयंकर भ्रष्टाचार से संबंधित एक वरिष्ठ पत्रकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार कर ली गई थी श्री नारायण सिंह चौहान (वरिष्ठ पत्रकार) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के कैम्पा फण्ड (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (CAMPA)) में भ्रष्टाचार पर दाखिल जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने 26 जून 2014 को स्वीकार कर ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद केंद्र ने 2009 में उजड़े वनों के लिए फिर से वनीकरण (Afforestation) हेतु इस कोष का गठन किया था। इस कोष में छत्तीसगढ़ सरकार को 1800 करोड़ की राशि मिलनी थी, जिसमें से 400 करोड़ उन्हें मिल चुक हैं। इस पैसे से राज्य के आईएफएस, आईएएस और मंत्रियों ने खूब ऐश किया और केंद्र के गाइडलाइन के साथ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी खुली अवहेलना की। इसी पैसे से महँगी गाड़िया खरीदी गई और बंगले बनवाए गए। करीब 100 करोड़ की राशि इन भ्रष्टाचारियों ने सीधे सीधे मात्र कूटरचना करके डकार ली। हालांकि उक्त पत्रकार को वन माफिया और आईएफएस लॉबी ने मानसिक तौर पर खूब प्रताड़ित किया और कई बार आरटीआई में जानकारी देने से भी इंकार किया था। बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और उनके द्वारा संकलित करीब 3000 पन्नों के दस्तावेज बताते हैं कि राज्य के एक दर्जन आईएफएस अधिकारी इस मामले में भ्रष्टाचार के सीधे दोषी हैं। पत्रकार पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी मशहूर अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्वीज कर रहे थे। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि कैंपा कोष से प्राप्त राशि को राज्य सरकार, वन विभाग सचिव, वन विभाग के आलाअधिकारी और वनमंडलाधिकारी ने मिलीभगत करके राशि का उपयोग स्वंय के हित में किया है और इस खेल में वनमंडलाधिकारी एक खास कड़ी हैं। याचिका को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने तत्कालीन रमन सरकार और उनके करीबी सचिव, उच्च अधिकारियों और वनमंडलाधिकारी के खिलाफ याचिका को स्वीकार कर लिया। विवादित वनमंडलाधिकारी एक के बाद एक शासन प्रशासन के आदेशों की अवहेलना करने में माहिर माने जाते हैं। इसी क्रम में उन्होंने आरटीआई में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में असहमति जताई है। लेकिन कारण क्या है? यह समझ से बाहर है। बहरहाल इतना तो वनमंडलाधिकारी को अवश्य समझ आ गया है कि अगर लिखित में कुछ भी दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे इसलिए अपनी गर्दन फंसने से बचाने का एक कारगर उपाय है कि असहमति जता दी जाए। मगर शासन को अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देने से क्या अर्थ निकाला जा सकता है? अब ये तो राज्य सरकार और वन विभाग के नये मंत्री को विचार करना है और उस पर कार्रवाई की योजना बनानी है। वन विभाग के नये मंत्री के लिए सबसे बड़ी मुसीबत है रायपुर सामान्य वन मंडल कार्यालय और कैम्पा कोष का वन परिक्षेत्र कार्यालय, पंडरी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कोई उचित कदम उठाना। इन दोनों ही कार्यालयों में कई ऐसे पुराने घाघ बैठें हैं जो शासन के रूपयों का जमकर दुरूपयोग करते हैं और स्वंय की संपत्ति बनाने में जुटे हैं।
भ्रष्ट्राचार की खुली लूट की कहानी
- राज्य सरकार के अधिकारियों ने राज्य के वनों को सुधारने के लिए बने छग राज्य क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंध एंव योजना प्राधिकरण यानि कैम्पा के जरिए से 107 करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि की हेराफेर की है।
- कैग की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार का वन विभाग क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए गैर वनीय भूमि उपलब्ध होने के बावजूद भी गैर वनभूमि अनुपलब्धता के प्रमाण पत्र जारी करके अपनी काली करतूतों को छुपाने की लगातार कोशिशें करता आया है। जिन स्थानों पर बिगड़े वन क्षेत्रों में क्षतिपूर्ति वनीकरण का कार्य दिखाया गया है वो भी लगभग 75 प्रतिशत से अधिक फर्जी है। कार्य कराने के नाम पर कैम्पा कोष की राशि को मिल जुल कर दुरूपयोग किया गया और कई फर्जी कार्यों, स्थानों और बिलों को प्रस्तुत किया गया है। प्रति दर के हिसाब से गलत दरों के द्वारा प्रयोग किया गया है, मार्गदर्शिका या स्वीकृति आदेश की अवहेलना की गई और अकारण की मांग जारी करके अठ्ठासी करोड़ सत्तान्वे लाख रुपये (88.97 करोड़) क्षतिपूर्ति वनीकरण की लागत, शुद्ध मूल्य व प्रतिशत और तादाद आदि का रोपण किए बिना व बिना जांच के ही राशि का भुगतान कर दिया गया तथा क्षतिपूर्ति वनीकरण में शुद्ध प्रत्याशी दर पर भी वसूली कम की गई है।
- कैग में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर, छग के प्रधान वन मुख्य संरक्षक ने बिगड़ते वनों के सुरक्षा व बहाली के लिए 400 पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पहले दो वर्षों के कार्य के लिए जिसमें सर्वेक्षण, सीमांकन, क्षेत्र की तैयारी तथा पौधों की रोपणी को शामिल किया था, प्रति हेक्टेयर पन्द्रह हज़ार एक सौ रूपए (रू.15,100/-) खर्च का निर्धारण किया गया। सह-निर्माण अक्टूबर 2010 में हुआ था लेकिन वनमंडलाधिकारी धमतरी और पूर्वी सरगुजा के पांच कक्षों में बावन हज़ार सात सौ रूपए (रू.52,700/-) प्रति हेक्टेयर खर्च किया गया यानि कि दो करोड़ सत्तावन लाख रुपये (2.57 करोड़) का अतिरिक्त खर्च किया गया और जिसकी जानकारी भी छुपाई गई। यहाँ तक कि उच्च अधिकारियों को कोष की राशि के दुरूपयोग की जानकारी हो जाने के बाद भी मामले को संज्ञान में नहीं लिया गया और न ही किसी भी प्रकार की कार्यवाही ही की गई।
- कैम्पा कोष की राशि से इको टूरिज्म पर भी जम कर खर्च किया गया है और इस अतिरिक्त खर्च के फर्जीवाड़े में सामान्य वन मंडल कार्यालय, रायपुर के वनमंडलाधिकारी और पंडरी परिक्षेत्र कार्यालय के रेंज अधिकारी दोनों की ही भागीदारी है। राज्य सरकार ने वन संरक्षक अधिनियमों की धज्जियां उड़ाते हुए 77.500 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग ईको टूरिज्म केन्द्र के विकास में खर्च कर दिया है। जबकि मार्गदर्शिका और भारत सरकार के दिशा निर्देशों के विपरीत महंगे वाहनों की खरीदी की गई, अधोसंरचना निर्माण और ईको टूरिज्म गतिविधियों पर बारह करोड़ इकत्तीस लाख रुपये (12.31 करोड़) का अनाधिकृत व्यय किया गया है। इस मामले पर उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर की गई है जिसमें सिलसिलेवार गतिविधियों की पूरी जानकारी का ब्यौरा दिया गया है।
- इसके अलावा कैम्पा कोष की राशि को मनमाने ढंग से खर्च किया जा रहा है जंगल सफारी में, और जंगल सफारी के नाम पर बेहिसाब राशि का भी दुरूपयोग सामने आया है, और इस राशि की बंदरबांट में भी सामान्य वन मंडल कार्यालय, रायपुर के वनमंडलाधिकारी अभय श्रीवास्तव, उप-वनमंडलाधिकारी एम.बी.गुप्ता और पंडरी परिक्षेत्र कार्यालय के रेंज अधिकारी सिन्हा तीनों की बराबर की भागीदारी है। छग राज्य कैम्पा कोष द्वारा जंगल सफारी के अन्तर्गत स्वीकृत कार्य करने में दो करोड़ चालीस लाख रुपये (2.40 करोड़) का अतिरिक्त अनाधिकृत व्यय भी किया गया है।
- मुरूम संग्रहण पर चालीस करोड़ बीस लाख रुपये (40.20 करोड़) अनाधिकृत व्यय किया गया है। – कैम्पा कोष के तहत विशेष प्रजाति रोपण योजना में भी पिछले कई वर्षों में रोपण होने के बावजूद गलत क्षेत्रों का चयन कर गलत प्रजातियों को चयनित किया गया और उच्चतम दर का भुगतान कर एक करोड़ सात लाख रुपये (1.07 करोड़ ) अनाधिकृत खर्च किया गया है। जबकि कैम्पा कोष और वन विभाग के अधिनियमों के विपरीत जाकर कार्य करने को दर्शा रहा है बावजूद इसके वन विभाग के उच्च अधिकारी और राज्य सरकार कार्यवाही करने की बजाए इन भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास कर रही है और कैग रिपोर्ट के आंकड़ों को भी अनदेखा करते हुए राज्य के वन मंत्री ने केंद्र से कैम्पा कोष के तहत बकाया राशि की एकमुश्त मांग की है। जबकि होना यह चाहिए कि पहले इन भ्रष्टाचारियों को उनके किए गए भ्रष्टाचार के तहत कार्रवाई होनी चाहिए उसके पश्चात ही बकाया राशि की मांग रखनी चाहिए थी।
- कैम्पा कोष के दुरुपयोग की कहानी कैम्पा के गठन वर्ष 2009 के बाद जब पहली बार कैम्पा कोष के तहत राज्य को राशि आवंटित की गई थी तब से ही वन विभाग में लूट का यह खेल खेला जा रहा है, वर्तमान स्थिति तक में कैम्पा कोष के दुरुपयोग के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो आंकड़े हैरान कर देने वाले प्राप्त होतें हैं। सबसे अधिक आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि वनमंडलाधिकारी, उप-वनमंडलाधिकारी और रेंज अधिकारी तीनों ने मिलजुल कर प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भी भ्रम में रखा और उनके पास तक कई फर्जीवाड़े को पहुंचने तक नहीं दिया गया और आंकड़ों में भी हेराफेरी कर गलत दस्तावेज उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसकी भनक प्रधान मुख्य वन संरक्षक को काफी बाद में लगी, यानी कि इन भ्रष्टाचारियों ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक तक को नहीं बख्शा है। रिकार्डों में भी हेराफेर की संभावना जताई गई है।
- सूत्रों के अनुसार, वनमंडलाधिकारी काफी ऊपर तक पहुंच रखतें हैं जिस कारण से वह इतने बड़े बड़े भ्रष्टाचार करने के बावजूद भी आज तक पूरी तरह सुरक्षित हैं और भविष्य में फिर से कई बड़े भ्रष्टाचार करने की योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जा रही है। सूत्रों की मानें तो इस बार जंगल सफारी के नाम पर जोरदार हेराफेर की जाने की संभावना है और कुछ स्थानों पर सागौन रोपड़ी में भी हेराफेर की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक, कैम्पा कोष के मद से इस बार फिर से तीन नयी लग्ज़री वाहनों की खरीदी करने की भी योजना तैयार की गई है जिसके तहत वन मंत्री, सचिव और वनमंडलाधिकारी इन लग्जरी वाहनों का उपयोग करेंगे। वाहनों में डस्टर नामक चारपहिया वाहन का चयन किया गया है।
इस सबके बावजूद भी 2015 के जुलाई माह तक में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में कोई परिवर्तन नहीं आया था आज भी लूटमारी चालू है, रायपुर सामान्य वन मंडल के वनमंडलाधिकारी अभय श्रीवास्तव की अड़ियलबाज़ी और भर्राशाही निरंतर चालू ही है। भ्रष्टाचार की यह कहानी कोई नई नहीं है बल्कि लगभग पांच वर्षों से लगातार जारी है। वन विभाग की कमान नये मंत्री को मिलने के बाद कुछ हद तक उम्मीदें जागृत हो उठीं हैं कि वनमंडलाधिकारी, उप-वनमंडलाधिकारी, रेंज अधिकारी, क्लर्क और अन्य सभी शासकीय कर्मचारी जो इन भ्रष्टाचारों में सम्मिलित हैं उन पर जांच कराई जाए और सख्त कार्रवाई की जाए, और दोषी पाए जाने वालों से शासन की राशि की वसूली भी की जाए, सारी संपत्ति को कुर्क करने जैसी प्रक्रिया भी अपनायी जाए ताकि ऐसे भ्रष्टाचार करने वालों के लिए यह कारवाई सबक साबित हो जाए और भ्रष्टाचार करने से पहले उनके अंदर इस बात का डर पैदा हो जाए कि गर पकड़े गए तो अंजाम कैसा होगा। जिस दिन ऐसा हो गया समझ लीजिए कि भ्रष्टाचार पर लगाम कस गई।