ApnaCg @पूरी दुनिया घूम रहा हूं, पर मेरी जन्म धरा बिलासपुर से कोई नहीं बुलाता- अशोक मिश्रा
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजे गए, फिल्म लेखक अशोक मिश्रा से मुलाकात में कही दिल की बात
नसीम, समर,वेलडन अब्बा,कटहल जैसे फिल्म का लेखन किया
बिलासपुर में बचपन के दिनों को याद किया.
बिलासपुर । पटकथा लेखक, गीतकार और दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजे गए, अशोक मिश्रा जी से विश्व रंग 2024 मॉरीषस में मुलाकात हुई। वे विष्वरंग 2024 में शिरकत करने मुंबई से मॉरीशस पहुंचे थे। रात के भोजन के समय टेबल पर मेरी उसने मेरी मुलाकात हुई। मैंने अपना परिचय देते हुए बताया, कि मेरा नाम किशोर है, और मैं बिलासपुर छत्तीसगढ़ में रहता हुं। यह सुनते ही कि उनमें जोरदार उर्जा आ गई, चेहरे मुस्कान, आखों में खुशी, उन्होंने मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, और मेरा हाथ पकड़कर बगल वाली कुर्सी पर बिठा लिया।
इसके बाद उनकी जुबानी पढ़िए… अरे यार…। किशोर… तुम तो मेरे दिल में बसे शहर के रहने वाले हो। बिलासपुर के देवकीनंदन चौक के पास अशोक प्रसूती में मेरा जन्म हुआ है, इसलिए ही मेरा नाम अशोक रखा गया। कंपनी के गार्डन में मेरा बचपन बीता है,जिसमें नीली हरी पीली,मछलियां हुआ करती थी। उन्होंने ही मेरे दिमाग में सुंदर तस्वीर बनाई, उन मछलियों ने ही मेरी कलात्मकता और कला दृष्टि को मजबूत किया। संतोष भुवन को दोसा और रसगुल्ला मुझे बहुत पसंद था। हम लोग संतोष भुवन में अक्सर जाया करते थे, और अरपा नदी में तैरने भी जाते थे। वहीं पर चाटापारा स्कूल था, जब चांटापारा स्कूल में मेरा एडमिशन कराया गया। तो मुझे लगा, कि यहां चांटा बहुत मारा जाता होगा, इसलिए ही स्कूल का नाम ही चांटापारा रखा गया है। अकबर खान की चाल में हम रहते थे। घर के नसदीक ही एक मुस्लिम परिवार रहता था, जहां सलमा आपा और अनवर रहते थे, मैं उनके घर खेलने जाता था, उन्होंने मेरा नाम कल्लू रखा था। किशोर…यार…। बिलासपुर बहुत ही प्यारा शहर है। मैं पूरे भारत के हर राज्य और विदेश में घूमता हूं। लोग मुझे बुलाते हैं , कि आइए और कुछ बोलिए, लेकिन मेरा दुर्भाग्य है, कि मेरे बिलासपुर से कभी किसी ने मुझे नहीं बुलाया। इस बात का मुझे दुख होता है। मुझे बिलासपुर के निमंत्रण का इंतजार है।
वे बताते है, कि बिलासपुर में मेरी पढ़ाई कक्षा दूसरी तक हुई । मेरे पिता जी श्री रामस्वरूप मिश्र उप जिला शिक्षा अधिकारी थे। उन्होंने मेरा और बड़े भाई शिव का स्कूल में एडमिशन करा दिया था। स्कूल जाते समय हमारी मां कपड़े में बांध कर पराठा और अचार दिया करती थी, हम स्कूल न जाकर कंपनी गार्डन में ही खेलते और वह पराठा खाते थे। एक बार मेरे पिता जी स्कूल निरीक्षण में हमारे स्कूल पहुंचे, तो उन्होंने शिक्षक से पूछा मेरे बच्चे कैसा पढ़ रहे हैं। शिक्षक ने पिता जी को बताया, कि वे स्कूल ही नहीं आते। फिर क्या था , घर में जमकर पिटाई हुई . कुछ समय बाद पिताजी का ट्रांसफर सतना हो गया। फिर हम सभी सतना चले गए। वे कहते है कि श्रीकांत वर्मा, शंकर शेष , सत्यदेव दुबे ये बड़े लोग बिलासपुर के थे, मुझे भी इस बात का गर्व है, कि मैं भी बिलासपुर का हुं।
लेखक अशोक मिश्रा ने कई फिल्मों की पटकथा लिखी है,जिसके लिए उन्हें काफी प्रशंसा मिली। उन्हें नसीम और समर फिल्म के लिए दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया है। फिल्म वेलडन अब्बा को दर्शकों ने बहुत पसंद किया। उनके द्वारा लिखी कटहल फिल्म ने लोगों को खूब गुदगुदाया है। वे कमर्शियल और आर्ट फिल्म से अधिक पब्लिक सिनेमा लिखना पसंद करते हैं।