ApnaCg@पत्रकारिता नाम से नही चलती साहब, सर्वश्रेष्ठ लेख ही पत्रकारिता की सही मायने को दर्शाता है, जिसे आपने कई तरीकों से साबित किया है सुशील भैया – गणेश तिवारी
कांकेर@अपना छत्तीसगढ़ – यूं तो वर्षों से पत्रकारिता चली आ रही है। लेख लिख रहे है, जनता पढ़ रही है, मगर इसकी एक विशेष शैली होती है जिसे हासिल करना किसी किसी के ही नसीब में होता है। ऐसे ही पत्रकारिता के जगत में एक पत्रकार का जन्म हुआ जिन्होंने बस्तर का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया। पत्रकारिता जगत में एक अद्भुत और व्यक्ति विशेष का अवतरण हुआ, वो व्यक्ति थे सुशील शर्मा।
जिन्होंने अपनी शैली से न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारतवर्ष अपना परचम लहराया।
आज “बस्तर का मलिक मकबूजा कांड” आज कौन नहीं जानता? पूरे भारत में इनकी लेख को प्रसिद्धि प्राप्त हुई।
आइए उस अनमोल रत्न के बारे में जानते हैं।
सुशील शर्मा का जीवन परिचय,4 सितंबर 1961को जन्म हुआ था, 15वर्ष के उम्र से ही पत्रकारिता की शुरुवात किए थे, 61साल की उम्र में पिछले 46साल से पत्रकारिता कर रहे थे,पत्रकारिता की शुरुवात दैनिक नव भारत पखांजोरे से किए थे, 1999 में हुए नगर पालिका चुनाव में बरदेभाठा वार्ड से पार्षद के चुनाव में भी विजयी हुए थे,
संपादकीय साप्ताहिक हांकर,साप्ताहिक बस्तर किरण,साप्ताहिक महानदी टाइम्स, पत्रकारिता, दैनिक नव भास्कर, दैनिक नव भारत,दैनिक भास्कर, दैनिक देशबंधु, अमृत संदेश,सवेरा संकेत,नई दुनिया,दंडकरणीय समाचार, युग धर्म का विस्तार किया।बपिछले 27 वर्षों से लगातार साप्ताहिक बस्तर बंधु कई पत्रिका भी प्रकाशित कर रहे थे साथ ही बस्तर बंधु के प्रधान संपादक भी रहे। यह आम समाचार पत्र से एक श्रेणी ऊपर की ओर अग्रसर हुई और एक नया मुकाम हासिल किया।
1995में अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह जी ने बस्तर बंधु का विमोचन किया था,
सुशील शर्मा द्वारा प्रकाशित अन्य पत्रिका
पर्यावरण प्रबोध,चित्रोत्पाला भाग 1,2,3 तीन अंक,मां, नेवैध,और गाडियां पहाड़ से संबंधित आवश्यक जानकारी इन्होंने ही अपने समाचार पत्रों के माध्यम से जनता के बीच लाए थे,
इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर के पत्रिका दिनमान, ब्लिड्ज,धर्म युग,आदि पत्रिका में भी इनके लिखे हुए लेख प्रकाशित होते रहते थे।
लोगों तक हर जानकारी पहुंचे इसके लिए स्व सुशील शर्मा जी ने अपने अंतर्जगत के हुनर को
पर्यावरण प्रबोध,चित्रोत्पाला भाग 1,2,3 तीन अंक,मां, नेवैध,और गाडियां पहाड़ जैसे लेख से प्रभावित किया और इससे संबंधित आवश्यक जानकारी इन्होंने ही अपने समाचार पत्रों के माध्यम से जनता के बीच लाए।
19जुलाई को रायपुर में ब्रेन हेमरेज हो जाने के कारण उन्हें इलाज हेतु रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल, रायपुर में भर्ती किया गया था,जहा जीवन वा मृत्यु से 17दिन तक संघर्ष करने के बाद डॉक्टर ने जवाब दे दिया ,उसके बाद परिवार वाले उन्हें 5 अगस्त को कांकेर लेकर आ गए,और 6अगस्त को सुबह स्वर्ग सिधार गए।
इसलिए कहते हैं-
हंसकर मरा कोई दुनिया में कोई रोकर मरा। जिंदगी जी उसी ने जो कुछ होकर मरा।।
:अज्ञात