ApnaCg @मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने “शीत जल मत्स्यिकी : अप्रयुक्त संसाधन” पर वेबिनार का आयोजन किया
दिल्ली –मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के मत्स्य पालन विभाग ने 20 से 26 दिसंबर, 2021 तक मत्स्य पालन विभाग के लिए निर्धारित किए गए विशेष सप्ताह के अवसर पर “आजादी का अमृत महोत्सव” के भाग के रूप में आज यहां “शीत जल मत्स्यिकी : अप्रयुक्त संसाधन” पर एक वेबिनार का आयोजन किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जतिंद्र नाथ स्वैन, सचिव, मत्स्य पालन विभाग ने की और इसमें विभिन्न राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्य पालन अधिकारियों, राज्य कृषि, पशु चिकित्सा और मत्स्य विश्वविद्यालयों के संकायों, उद्यमियों, वैज्ञानिकों, किसानों, हैचरी मालिकों, छात्रों और देश भर में मत्स्य पालन उद्योग के हितधारकों सहित 100 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए।इस वेबिनार की शुरुआत आई ए सिद्दीकी, मत्स्य विकास आयुक्त, मत्स्य पालन विभाग के स्वागत भाषण और वेबिनार के विषय के साथ हुई और इसमें विशिष्ट पैनलिस्ट, जतिंद्र नाथ स्वैन, सचिव, मत्स्य पालन विभाग, सागर मेहरा, संयुक्त सचिव (अंतर्देशीय मत्स्य पालन) और संयुक्त सचिव (समुद्री मत्स्य पालन) के साथ-साथ डॉ. पीके पांडे निदेशक, आईसीएआर-कोल्डवॉटर फिशरीज निदेशालय (डीसीएफआर), भीमताल और अन्य प्रतिभागी शामिल हुए।अपने उद्घाटन भाषण में केंद्रीय मत्स्य पालन सचिव, श्री स्वैन ने हाल के वर्षों में मत्स्य पालन क्षेत्र में हुई वृद्धि और विकास पर प्रकाश डाला और कहा कि विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के युवाओं और महिलाओं के लिए एक आकर्षक और व्यवहार्य आजीविका के लिए सुरक्षित विकल्प के रूप में शीत जल मत्स्य पालन और जलकृषि का विस्तार करने की पर्याप्त गुंजाइश है और इसकी आवश्यकता है। इसके अलावा, श्री स्वैन ने दूरदराज के शीत जल वाले क्षेत्रों के किसानों और मछुआरों के लिए अच्छा लाभ सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत अवसंरचना, संभावित बाजार और लागत प्रभावी परिवहन प्रणाली बनाने की सलाह दी। श्री स्वैन ने वैज्ञानिकों और उद्यमियों से किसानों को प्रेरित करने और मुनाफे में बढ़ोत्तरी, इनपुट लागत में कमी, प्रजातियों का विविधीकरण और शीत जल की प्रजातियों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि लाने के लिए अभिनव उयायों को विकसित करने का भी अनुरोध किया। सागर मेहरा, संयुक्त सचिव (अंतर्देशीय मत्स्य पालन) ने अपने उद्घाटन भाषण में खाद्य सुरक्षा और रोजगार सृजन को सुनिश्चित करने के लिए हिमालयी राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में मछली उत्पादन को बढ़ाकर शीत जल मत्स्य पालन करने वाले निर्णायक स्थलों के उपर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला और प्रजातियों के विविधीकरण को सुनिश्चित करने के लिए शीत जल वाली मछलियों की जैव विविधता की स्थिति पर एक अपडेट डाटाबेस बनाने के साथ-साथ सुदूर इलाकों में भी शीत जल वाली जलकृषि के लिए गुणवत्तापूर्ण बीज और आहार की उपलब्धता, सजावटी मत्स्य पालन और पारिस्थितिकी पर्यटन का विकास करने पर बल दिया। इसके अलावा, श्री मेहरा ने कहा कि किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना शीत जल क्षेत्रों के लाभार्थियों की अल्पकालिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करती है और इसके अलावा, विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्रदान करके वैज्ञानिक तरीकों, नवाचारों और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के द्वारा शीत जल मत्स्य पालन को बढ़ावा दे रही है जो कि शीत जल वाले क्षेत्रों के स्थानीय निवासीयों को लाभान्वित कर सकती है।
डॉ. जे बालाजी, संयुक्त सचिव (समुद्री मत्स्य पालन) ने वेबिनार के संदर्भ के बारे में बात करते हुए कहा कि शीत जल वाले मत्स्य संसाधन, मत्स्य पालन के क्षेत्र में वास्तविक विकास ला सकते हैं और मत्स्य पालन विभाग शीत जल मत्स्य पालन की वर्तमान उत्पादन स्थिति में महत्वपूर्ण अंतर लाने के लिए हमेशा ही उत्सुक रहा है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) जैसी योजनाओं में शीत जल क्षेत्र के संबंध में अलग-अलग परिचालन और वित्तीय दिशा-निर्देश प्रदान किए गए हैं और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्य पालन विभागों को इस योजना का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। डॉ. बालाजी ने शीत जल वाले क्षेत्रों में रेनबो ट्राउट जैसी प्रजातियों के लिए पोस्ट हार्वेस्ट, परिवहन, संवर्धन और ब्रांडिंग सुविधाओं को विकसित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।तकनीकी सत्र के दौरान, डॉ. पीके पांडे, निदेशक, आईसीएआर-कोल्डवॉटर फिशरीज निदेशालय, भीमताल ने वर्तमान उत्पादन, उत्पादक प्रवृत्तियों, आरएएस जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों, प्रजनन पद्धतियों, सजावटी मत्स्य पालन, जीआईएस आधारित साइट उपयुक्तता, मानचित्र तैयारी, रैंचिंग, रोग निगरानी और जलीय स्वास्थ्य प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना, आनुवंशिकी, जैव प्रौद्योगिकी, मछली प्रजातियों के पोषक तत्वों की प्रोफाइलिंग, हितधारकों का क्षमता निर्माण, अवसंरचना की योजना बनाना और शीत जल मत्स्य पालन और जलकृषि की विभिन्न तकनीकों का प्रदर्शन करने के लिए “शीत जल की मात्स्यिकी और जलीय कृषि: संसाधन, अनुसंधान और रणनीतियों” पर एक व्यापक प्रस्तुति दी। डॉ. पांडेय ने देश के पोषण और खाद्य सुरक्षा के लिए शीत जल मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए सत्र का समापन किया और कहा कि डीसीएफआर शीत जल मत्स्य पालन के विभिन्न दृष्टिकोणों के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है।प्रस्तुति के बाद मत्स्य किसानों, उद्यमियों, हैचरी मालिकों, छात्रों, वैज्ञानिकों और विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्यों के साथ एक खुला चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। चर्चा के बाद, डॉ. एस. के. द्विवेदी, सहायक आयुक्त, मत्स्य पालन विभाग द्वारा प्रस्तुत किए गए धन्यवाद प्रस्ताव के साथ ही इस वेबिनार का समापन हुआ।