Apnacg@देख रहा हैं न “विनोद”वन विभाग मैनपुर ने कैसे शासन के निर्देशो का उल्लंघन कर खुद के जंगल से मुरम,गिट्टी और रेत चोरी कर बना दिया कैम्पा मद से लाखों रूपए की सड़क व पुलिया और रपटा?

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संरक्षित वन क्षेत्र के एक किमी के दायरे में नहीं होगा निर्माण और खनन, बाबजूद वन विभाग के भ्रष्ट्रासुरों ने की जंगल से ही मुरम,रेत,गिट्टी की अबैध खुदाई

लोकसभा में गूंजा था छत्तीसगढ़ में कैम्पा मद की राशि का दुरुपयोग का मुद्दा,गरियाबंद जिले में जांच हुई तो नपेंगे कई भ्रस्ट्रासुर

मुख्यमंत्री का स्वयंभुव उर्फ कथित रिश्तेदार एसडीओ के मार्ग दर्शन में हो रहा हैं कैम्पा मद में खेला?पहले लुटा वन विभाग बलौदाबाजार तो अब इनसे त्रस्त होकर जिम्मेदार अधिकारी जंगल छोड़कर बजा रहें हैं मजबूरी में गिटार?

मैनपुर/गरियाबंद@अपना छत्तीसगढ़ – सर्वप्रथम आपको बता दे कि देश सर्वोच्च न्यायालय ने तीन जून दिन शुक्रवार 2022 को अहम निर्देश में कहा था कि राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्य में संरक्षित वन के सीमांकन रेखा से कम से कम एक किलोमीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण और खनन को मंजूरी नहीं दी जा सकती। जस्टिस एल नागेश्वर राव,जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा था कि राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंदर पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (इको सेंसिटिव जोन) होना चाहिए। पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के मुख्य वन संरक्षक को ईएसजेड के भीतर मौजूद सभी निर्माणों की सूची तैयार करने और तीन माह के अंदर कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट पेश करने को कहा था।पीठ ने कहा था कि इसके लिए अधिकारी सैटेलाइट से तस्वीरें प्राप्त करने या ड्रोन से फोटोग्राफी कराने के लिए सरकारी एजेंसियों की मदद ले सकते हैं। पीठ ने यह निर्देश एक लंबित जनहित याचिका पर दिया था ‘टीएन गोडावर्मन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ शीर्षक वाली यह याचिका वन संरक्षण के जुड़े मुद्दों पर थी।उसके बाबजूद भी वन विभाग के भ्रस्ट्रासुरों ने अपने ही जंगल की जमीन से रेत,मुरम,गिट्टी पत्थर निकालकर डब्ल्यूबीएम सड़क का निर्माण किया जा रहा हैं।

वन विभाग की डब्ल्यूबीएम सड़क, गिट्टी की बजाय जंगल से लाकर बिछाया बोल्डर व मिट्टी

वन मंडल गरियाबंद के सभी रेंज में हर साल वन मार्गों का निर्माण होता है। कैंपा मद से इसकी मंजूरी मिलती है, लेकिन वन अफसर जंगल से ही पत्थर और मिट्टी मुरूम डालकर सड़क बना देते हैं। बाकी राशि को डकार जाते हैं।इसकी भी अगर जांच कराई जाए तो बड़ी गड़बड़ी का मामला सामने आ सकता है। यही नहीं किसी को पता ना चले इसके लिए सूचना फलक भी नहीं लगाया जाता। कैंपा मद के कार्यों में मनरेगा कि तरह सोशल ऑडिट कराना होता है, लेकिन अभी तक किसी भी कार्य की सोशल ऑडिट नहीं कराई गई है।इनदिनों वन मंडल गरियाबंद के वन परिक्षेत्र मैनपुर(सामान्य) रेंजर ने नई तकनीक से डब्ल्यूबीएम सड़क का निर्माण करा रहे हैं। गिट्टी के स्थान पर जंगल से ही बोल्डर लाकर इस तरह बिछा दिया और उसके ऊपर मिट्टी रूपी मुरुम डाल दिया।वो मुरम भी निर्माण स्थल से अगल बगल से सारे नियमो को ताक पर रखकर बेतहासा खोदा गया हैं। बताना लाजमी होगा कि वन परिक्षेत्र मैनपुर(सामान्य) अंतर्गत डब्ल्यूबीएम सड़क कैम्पा मद से छोटे छोटे गोबरा नाका से कांटीपारा सीमा जिसका भौतिक लक्ष्य 2 कि.मी.जिसकी लागत तीस लाख बीस हजार था। एवम बड़े गोबरा से पेंड्रा वन मार्ग से जिसका भौतिक लक्ष्य 3.50 कि.मी. जिसकी लागत 52लाख 85 हजार था एवम भाठीगड से पथररी वन मार्ग जिसका भौतिक लक्ष्य 3.1कि.मी. जिसकी लागत 46 लाख 81 हजार था जिसका निर्माण वन परिक्षेत्र अधिकारी संजीत मरकाम द्वारा भंडारण क्रय अधिनियम का पालन न करते हुए अतिरिक्त्त धन कमाने की लालसा से नियम विरुद्ध जंगल की ही मिट्टी,मुरम,और पत्थर बिनबाकर
डब्ल्यूबीएम सड़क का निर्माण करा दिया गया है।

वन विभाग की डब्ल्यूबीएम सड़क,नियम विरूद्ध गिट्टी की बजाय जंगल से लाकर बिछाया बोल्डर व मिट्टी

बताते चले कि वन परिक्षेत्र अधिकारी मैनपुर(सामान्य)के भ्रस्ट रेंजर ने नई तकनीक से डब्ल्यूबीएम सड़क का निर्माण करा रहे हैं। गिट्टी के स्थान पर जंगल से ही बोल्डर लाकर इस तरह बिछा दिया और उसके ऊपर मिट्टी रूपी मुरुम जंगल से ही खोदकर डाल दिया।वो मुरम भी निर्माण स्थल से अगल बगल से सारे नियमो को ताक पर रखकर बेतहासा खोदा गया हैं।जबकिं नियम यहां हैं कि निर्माण कार्यो में भंडाण क्रय अधिनियम का पालन करते हुए हुए विभाग को निविदा जारी कर सप्लायरों से अनुबंध कर निर्माण सामग्री क्रय करना होता हैं न की वनों से पत्थर,गिट्टी,मिट्टी या मुरम खनन नही किया जाता हैं किंतु इन अधिकारियों को शासन द्वारा दी जाने बाली माशिक पगार कम पड़ती हैं जिसके चलते कम समय मे अधिक धन अर्जित करने की लालसा में वनों का ही सत्त्यानाश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। अगर जांच कराई जाए तो बड़ी गड़बड़ी का मामला सामने आ सकता है। यही नहीं किसी को पता ना चले इसके लिए सूचना फलक भी नहीं लगाया गया हैं। अभी तक किसी भी कार्य की सोशल ऑडिट नहीं कराई गई है।निर्धारित माप से दुगना माप के पत्थरों का उपयोग कर सड़क निर्माण किया गया हैं साथ ही उच्चाधिकारियों को अंधेरे में रख जिम्मेदारो द्वारा भ्रष्ट्राचार को अंजाम दिया जा रहा हैं। और ये सब आपने आपको मुख्यमंत्री का रिश्तेदार बताने बाले मुख्यमंत्री के कथित रिश्तेदार के इशारे पर किया जा रहा हैं।जिससे इनके विभाग के रेंजर स्तर के अधिकारी इनकी करतूतों से इतने त्रस्त हो चुके हैं कि अब जंगल छोड़कर वे चुपचाप गिटार बजाकर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। इतना ही नही विरोध न हो इस लिए नरवा विकास कार्य को अघोषित रूप से जनप्रतिनिधियों को भी काम का ठेका देकर मापदंड के अनुरूप काम न कराकर कैम्पा मद की राशि को लूटने में कोई कोर कसर नही छोड़ी गई हैं।

वन अधिकारी गुणवत्ताहीन डब्ल्यूबीएम सड़क का निर्माण

बताते चले कि वन मंडल गरियाबंद के सभी वन परिक्षेत्र अन्तर्गत लाखो रुपए की लागत से डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण का कार्य कराया जा रहा है। लेकिन इस पूरे निर्माण में विभाग द्वारा न तो कार्य को अपने मापदंड के अनुरूप कराया जा रहा और न ही गुणवत्तापूर्ण सामग्रियों का उपयोग किया जा रहा है। दरअसल इस पूरे काम को विभाग द्वारा ही कराया जा रहा है जिसमे कुछ मटेरियल विभाग से अनुबंधित अपने चहेते ठेकेदार के माध्यम से नाम मात्र का उपलब्ध कराया जा रहा है।बाकी मटेरियल जंगल से गिट्टी,मिट्टी व मुरम जंगल से ही लिया जा रहा हैं।

निर्धारित माप व गुणवत्ताहीन पत्थरों का उपयोग

विभाग द्वारा किये जा रहे इस निर्माणकार्य में विभागीय प्राकलन के अनुसार मुरुमिकरण के पूर्व 40 मिली मीटर पत्थरों का प्रयोग किया जाना हैं जिसके बाद मुरुम की परत बिछाकर रोलर चलाया जाना है लेकिन जब मौके पर पहुंच निर्माणाधीन सड़क पर बिछाई जा रही पत्थरो का जायजा लिया गया तो 40 एम एम की जगह करीब 70-80 एमएम के बोल्डर पत्थरो का उपयोग जंगल से बिनवाकर किया जा रहा था।जिसके बारे में जब स्थानीय वन परिक्षेत्रीय अधिकारी मैनपुर(सामान्य) संजीत मरकाम को उनके मोबाईल नम्वर 9981072591से संपर्क किया गया तो साहब ने मोबाईल फोन रिसीव नही किया।

उच्चाधिकारियों को अंधेरे में रखकर किया जा रहा भ्रष्टाचार

गौरतलब है गरियाबंद वन विभाग में पहले भी विभाग द्वारा कराये जा रहे कामो को लेकर कई बार शिकायत मिल चुकी है। साथ ही वर्तमान में पदस्थ वनमंडलाधिकारी के पदस्थापना के बाद विभाग में होने वाले कई भ्रष्टाचार पर अंकुश भी लग गई है। लेकिन अब भी कुछ विभागीय अधिकारी द्वारा अपने उच्चाधिकारियों को अंधेरे में रखकर निर्माण कार्यो में बखूबी भ्रष्टाचार को अंजाम देने में जुटे है। बहरहाल देखना होगा वर्तमान में हो रहे इस निर्माण पर अब विभाग के उच्चाधिकारी किस तरह मामले को संज्ञान में लेकर कार्यवाही करते है ये देखना होगा।

लोकसभा में गूंजा था छत्तीसगढ़ में कैम्पा मद की राशि का दुरुपयोग का मुद्दा,गरियाबंद जिले में जांच हुई तो नपेंगे कई भ्रस्ट्रासुर

लोकसभा में कैम्पा मद की राशि के दुरुपयोग का मामला गूंजा था बिलासपुर सांसद अरूण साव ने इस मुद्दा को उठाते हुए वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए 2004 से स्थापित “क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण” (कैम्पा) के राशि का उपयोग वनीकरण एवं वन्य जीव संरक्षण के लिए ही किया जाना चाहिए,वन भूमि के बदले जारी की गई उक्त राशि का कुशल और पारदर्शी तरीके से शीघ्र उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए,लेकिन छत्तीसगढ़ में इसकी मंशा के विपरीत कैम्पा के मद की राशि का दुरुपयोग और बंदरबांट किया जा रहा है।सांसद अरुण साव ने लोकसभा में नियम 377 के अधीन अत्यंत महत्वपूर्ण लोक महत्व के विषय अंतर्गत उठाते हुए भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री से आग्रह किया कि पिछले तीन वर्षों में राज्य में कैम्पा के अंतर्गत किए गए कार्यों की व्यापक रूप से जांच कराकर आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की है।उल्लेखनीय है कि जिले में कैम्पा मद की राशि का जमकर कुप्रबंधन किया गया नियम विपरीत कैम्पा मद की राशि से करोड़ो के सीसी रोड ठेकेदारी प्रथा से बनाये गए है।भवन,डब्लू बी एम सड़क,पुल पुलिया जो इस मद की राशि से विपरीत है।इसी तरह विभाग में कैम्पा मद की राशि की विस्तृत जांच किये जाने पर करोड़ो की खामियां उजागर होगी।जिसके लिये क्या अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा? उन पर कार्यवाही की गाज गिरेगी ? यह तो समय ही बतायेगा । किंतु यह चर्चा का विषय है कि अगर जांच हुई तो नपेंगे गरियाबंद जिला में पदस्थ वन विभाग के कई भ्रष्ट्रासुर।

कैंपा मद में हर साल करोड़ो रूपये के होते हैं काम लेकिन सोशल ऑडिट नहीं कराते वन अफसर

बताते चले कि अगर गरियाबंद जिला में भी कैम्पा मद की राशि की जांच की जाती हैं तो गरियाबंद वन मंडल अंतर्गत के कई भ्रस्ट्रासुरों का नपना तय है।चूंकि वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए 2004 से स्थापित “क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण” (कैम्पा) के राशि का उपयोग वनीकरण एवं वन्य जीव संरक्षण के लिए ही किया जाना होता हैं किंतु गरियाबंद के भ्रस्ट्रासुरों द्वारा कैम्पा मद के नियम तोड़कर करोड़ रुपए का सड़क अपनी सुविधा और कमीशन डकारने के चक्कर मे किया हैं।जिससे वनों को कोई फायदा नही हुआ सिर्फ मुनाफा हुआ तो गरियाबंद जिला के विभिन्न वन परिक्षत्रों पदस्थ अधिकारी और कर्मचारियों को हुआ हैं।जबकिं प्राधिकरण” (कैम्पा) के राशि का उपयोग वनीकरण एवं वन्य जीव संरक्षण के लिए ही किया जाना था किन्तु विभाग में बैठे भ्रस्ट्रासुरों ने नियमो को तक मे रखकर अपने निजी लाभ और अतिरिक्त धन कमाने की लालच में वन मंडल गरियाबंद अंतर्गत के वनों में लाखों रुपए की लागत से बनने बाली डब्लू बी एम सड़क का स्तर हीन व अपने ही वनों से मुरम,गिट्टी,रेत,मिट्टी की चोरी कर सड़क बनाकर राशि का बंदरबांट कर लिया गया हैं।

पाण्डुका वन परिक्षेत्र में लाखो रुपए खर्च कर सड़क बन गई, ग्रामीणों को पता नहीं

दूसरी तरफ बड़े मिया तो बड़े मिया छोटे मिया सुभान अल्लाह के तर्ज पर वन परिक्षेत्र पाण्डुका के वन अफसरों ने अपने परिक्षेत्र अन्तर्गत मंडेली,जरगाव सहित कई ग्राम पंचायत में 15 से 20 लाख की लागत से डब्लू बी एम सड़क का निर्माण कराया है। लेकिन ग्रामीणों को इसकी लागत व लंबाई का पता ही नहीं है। गांव के ग्रामीणों ने बताया कि यहां कोई सूचना बोर्ड नहीं लगा था। कितनी राशि आई थी इसका भी पता नहीं है।

लाखो रुपए की लागत से कैम्पा मद से स्टापडेम बना, सूचना बोर्ड नहीं

पाण्डुका वन परिक्षेत्र अंतर्गत कैम्पा मद से 45 लाख रुपए से अधिक की लागत से स्टापडेम का निर्माण कराया गया है। लेकिन इसमें गेट भी नहीं लगाया गया है। गांव के गायडवरी के ग्रामीण ने बताया कि दो साल से इसका निर्माण हो रहा था। मजदूरी दर क्या है इसका भी पता नहीं है। लाखो रुपए की लागत से निर्माण कराया गया है।डेम में पानी ही नहीं बचाता है। ​​​​साथ ही मनरेगा में काम कराने सोशल आडिट करने का प्रावधान हैं।स्टापडेम, तालाब, फेंसिंग पौधरोपण, मृदा संरक्षण के कार्य कराए जाते हैं, लोगों को पता न चले इसलिए ही पंचायतों को सूचना नहीं देते हैं।न ही कार्य स्थल पर सूचना पटल लगाया जाता हैं।वन मंडल गरियाबंद में प्रति वर्ष कैंपा मद से करोड़ों रुपए की लागत से कार्य कराए जाते हैं। जिले के वन मंडल अन्तर्गत के सभी वन परिक्षेत्र में हर साल लाखो रुपए से करोड़ रुपए तक के काम मंजूर होते हैं, लेकिन वन विभाग के अधिकारी सोशल आडिट ही नहीं कराते हैं मनरेगा की तरह कैंपा मद से राजस्व जमीन पर काम कराने पर सोशल आडिट का प्रावधान है। इसके लिए पंचायतों में समिति बनाने के साथ ही योजना की जानकारी देने का प्रावधान है। कैंपा (वनारोपण निधि प्रबंधन व योजना प्राधिकरण) के तहत क्षतिपूरक वनीकरण, जलग्रहण प्रबंधन क्षेत्र का उपचार, वन्य जीव प्रबंधन, वनों में आग लगने से रोकने के उपाय, वन में मृदा व आर्द्रता संरक्षण के कार्य कराए जाते हैं। इसके तहत नालों में स्टापडेम, बोल्डर चेक डेम, तालाब का निर्माण, पौधरोपण, फेंसिंग समेत अन्य कार्य होते हैं।गरियाबंद जिला के वन क्षत्रो में तो करोड़ से अधिक के स्टापडेम का निर्माण कराया जा रहा है। जिसका काम अधूरा है लेकिन एक भी स्थान पर सूचना पटल ही नहीं लगाया गया है। गांव में सीसी रोड, तालाब में भी कोई सूचना पटल और गांव में मजदूरी भुगतान को लेकर कोई सूचना बोर्ड नहीं बनाया गया है।

सोशल आडिट कराने यह है प्रावधान

ग्राम सभा की बैठक लेकर जानकारी देना व 3 सदस्यों का चयन,कार्य की लागत, मापदंड, मजदूरी भुगतान की दर पढ़कर सुनाना,मजदूरी भुगतान की जानकारी महत्वपूर्ण स्थलों पर चस्पा करना,मजदूरों का नाम व भुगतान ग्राम सभा में पढ़कर सुनाना,पूर्ण किए गए कार्यों की मात्रा व मानकों का परीक्षण कराना,सरपंच ग्रामसभा लेकर मूल्यांकन प्रतिवेदन डीएफओ को प्रस्तुत करें,परियोजना के लिए प्रोजेक्ट अधिकारी की नियुक्ति डीएफओ करेंगे, डिप्टी रेंजर या परिसर रक्षक के साथ ही अलग से अधिकारी भी हो सकता है।

छत्तीसगढ़ में कैम्पा मद की लूट की कहानी आज की नही बहुत हैं पुरानी, जिसको लेकर वर्ष 2015 में वरिष्ठ पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में किया था याचिका दायर

छत्तीसगढ़ में भयंकर भ्रष्टाचार से संबंधित एक वरिष्ठ पत्रकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार कर ली गई थी श्री नारायण सिंह चौहान (वरिष्ठ पत्रकार) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के कैम्पा फण्ड (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (CAMPA)) में भ्रष्टाचार पर दाखिल जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने 26 जून 2014 को स्वीकार कर ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद केंद्र ने 2009 में उजड़े वनों के लिए फिर से वनीकरण (Afforestation) हेतु इस कोष का गठन किया था। इस कोष में छत्तीसगढ़ सरकार को 1800 करोड़ की राशि मिलनी थी, जिसमें से 400 करोड़ उन्हें मिल चुक हैं। इस पैसे से राज्य के आईएफएस, आईएएस और मंत्रियों ने खूब ऐश किया और केंद्र के गाइडलाइन के साथ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी खुली अवहेलना की। इसी पैसे से महँगी गाड़िया खरीदी गई और बंगले बनवाए गए। करीब 100 करोड़ की राशि इन भ्रष्टाचारियों ने सीधे सीधे मात्र कूटरचना करके डकार ली। हालांकि उक्‍त पत्रकार को वन माफिया और आईएफएस लॉबी ने मानसिक तौर पर खूब प्रताड़ित किया और कई बार आरटीआई में जानकारी देने से भी इंकार किया था। बावजूद इसके उन्‍होंने हार नहीं मानी और उनके द्वारा संकलित करीब 3000 पन्नों के दस्तावेज बताते हैं कि राज्य के एक दर्जन आईएफएस अधिकारी इस मामले में भ्रष्टाचार के सीधे दोषी हैं। पत्रकार पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी मशहूर अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्वीज कर रहे थे। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि कैंपा कोष से प्राप्त राशि को राज्य सरकार, वन विभाग सचिव, वन विभाग के आलाअधिकारी और वनमंडलाधिकारी ने मिलीभगत करके राशि का उपयोग स्वंय के हित में किया है और इस खेल में वनमंडलाधिकारी एक खास कड़ी हैं। याचिका को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने तत्कालीन रमन सरकार और उनके करीबी सचिव, उच्च अधिकारियों और वनमंडलाधिकारी के खिलाफ याचिका को स्वीकार कर लिया। विवादित वनमंडलाधिकारी एक के बाद एक शासन प्रशासन के आदेशों की अवहेलना करने में माहिर माने जाते हैं। इसी क्रम में उन्होंने आरटीआई में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में असहमति जताई है। लेकिन कारण क्या है? यह समझ से बाहर है। बहरहाल इतना तो वनमंडलाधिकारी को अवश्य समझ आ गया है कि अगर लिखित में कुछ भी दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे इसलिए अपनी गर्दन फंसने से बचाने का एक कारगर उपाय है कि असहमति जता दी जाए। मगर शासन को अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देने से क्या अर्थ निकाला जा सकता है? अब ये तो राज्य सरकार और वन विभाग के नये मंत्री को विचार करना है और उस पर कार्रवाई की योजना बनानी है। वन विभाग के नये मंत्री के लिए सबसे बड़ी मुसीबत है रायपुर सामान्य वन मंडल कार्यालय और कैम्पा कोष का वन परिक्षेत्र कार्यालय, पंडरी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कोई उचित कदम उठाना। इन दोनों ही कार्यालयों में कई ऐसे पुराने घाघ बैठें हैं जो शासन के रूपयों का जमकर दुरूपयोग करते हैं और स्वंय की संपत्ति बनाने में जुटे हैं।

भ्रष्ट्राचार की खुली लूट की कहानी

  • राज्य सरकार के अधिकारियों ने राज्य के वनों को सुधारने के लिए बने छग राज्य क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंध एंव योजना प्राधिकरण यानि कैम्पा के जरिए से 107 करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि की हेराफेर की है।
  • कैग की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार का वन विभाग क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए गैर वनीय भूमि उपलब्ध होने के बावजूद भी गैर वनभूमि अनुपलब्धता के प्रमाण पत्र जारी करके अपनी काली करतूतों को छुपाने की लगातार कोशिशें करता आया है। जिन स्थानों पर बिगड़े वन क्षेत्रों में क्षतिपूर्ति वनीकरण का कार्य दिखाया गया है वो भी लगभग 75 प्रतिशत से अधिक फर्जी है। कार्य कराने के नाम पर कैम्पा कोष की राशि को मिल जुल कर दुरूपयोग किया गया और कई फर्जी कार्यों, स्थानों और बिलों को प्रस्तुत किया गया है। प्रति दर के हिसाब से गलत दरों के द्वारा प्रयोग किया गया है, मार्गदर्शिका या स्वीकृति आदेश की अवहेलना की गई और अकारण की मांग जारी करके अठ्ठासी करोड़ सत्तान्वे लाख रुपये (88.97 करोड़) क्षतिपूर्ति वनीकरण की लागत, शुद्ध मूल्य व प्रतिशत और तादाद आदि का रोपण किए बिना व बिना जांच के ही राशि का भुगतान कर दिया गया तथा क्षतिपूर्ति वनीकरण में शुद्ध प्रत्याशी दर पर भी वसूली कम की गई है।
  • कैग में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर, छग के प्रधान वन मुख्य संरक्षक ने बिगड़ते वनों के सुरक्षा व बहाली के लिए 400 पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पहले दो वर्षों के कार्य के लिए जिसमें सर्वेक्षण, सीमांकन, क्षेत्र की तैयारी तथा पौधों की रोपणी को शामिल किया था, प्रति हेक्टेयर पन्द्रह हज़ार एक सौ रूपए (रू.15,100/-) खर्च का निर्धारण किया गया। सह-निर्माण अक्टूबर 2010 में हुआ था लेकिन वनमंडलाधिकारी धमतरी और पूर्वी सरगुजा के पांच कक्षों में बावन हज़ार सात सौ रूपए (रू.52,700/-) प्रति हेक्टेयर खर्च किया गया यानि कि दो करोड़ सत्तावन लाख रुपये (2.57 करोड़) का अतिरिक्त खर्च किया गया और जिसकी जानकारी भी छुपाई गई। यहाँ तक कि उच्च अधिकारियों को कोष की राशि के दुरूपयोग की जानकारी हो जाने के बाद भी मामले को संज्ञान में नहीं लिया गया और न ही किसी भी प्रकार की कार्यवाही ही की गई।
  • कैम्पा कोष की राशि से इको टूरिज्म पर भी जम कर खर्च किया गया है और इस अतिरिक्त खर्च के फर्जीवाड़े में सामान्य वन मंडल कार्यालय, रायपुर के वनमंडलाधिकारी और पंडरी परिक्षेत्र कार्यालय के रेंज अधिकारी दोनों की ही भागीदारी है। राज्य सरकार ने वन संरक्षक अधिनियमों की धज्जियां उड़ाते हुए 77.500 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग ईको टूरिज्म केन्द्र के विकास में खर्च कर दिया है। जबकि मार्गदर्शिका और भारत सरकार के दिशा निर्देशों के विपरीत महंगे वाहनों की खरीदी की गई, अधोसंरचना निर्माण और ईको टूरिज्म गतिविधियों पर बारह करोड़ इकत्तीस लाख रुपये (12.31 करोड़) का अनाधिकृत व्यय किया गया है। इस मामले पर उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर की गई है जिसमें सिलसिलेवार गतिविधियों की पूरी जानकारी का ब्यौरा दिया गया है।
  • इसके अलावा कैम्पा कोष की राशि को मनमाने ढंग से खर्च किया जा रहा है जंगल सफारी में, और जंगल सफारी के नाम पर बेहिसाब राशि का भी दुरूपयोग सामने आया है, और इस राशि की बंदरबांट में भी सामान्य वन मंडल कार्यालय, रायपुर के वनमंडलाधिकारी अभय श्रीवास्तव, उप-वनमंडलाधिकारी एम.बी.गुप्ता और पंडरी परिक्षेत्र कार्यालय के रेंज अधिकारी सिन्हा तीनों की बराबर की भागीदारी है। छग राज्य कैम्पा कोष द्वारा जंगल सफारी के अन्तर्गत स्वीकृत कार्य करने में दो करोड़ चालीस लाख रुपये (2.40 करोड़) का अतिरिक्त अनाधिकृत व्यय भी किया गया है।
  • मुरूम संग्रहण पर चालीस करोड़ बीस लाख रुपये (40.20 करोड़) अनाधिकृत व्यय किया गया है। – कैम्पा कोष के तहत विशेष प्रजाति रोपण योजना में भी पिछले कई वर्षों में रोपण होने के बावजूद गलत क्षेत्रों का चयन कर गलत प्रजातियों को चयनित किया गया और उच्चतम दर का भुगतान कर एक करोड़ सात लाख रुपये (1.07 करोड़ ) अनाधिकृत खर्च किया गया है। जबकि कैम्पा कोष और वन विभाग के अधिनियमों के विपरीत जाकर कार्य करने को दर्शा रहा है बावजूद इसके वन विभाग के उच्च अधिकारी और राज्य सरकार कार्यवाही करने की बजाए इन भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास कर रही है और कैग रिपोर्ट के आंकड़ों को भी अनदेखा करते हुए राज्य के वन मंत्री ने केंद्र से कैम्पा कोष के तहत बकाया राशि की एकमुश्त मांग की है। जबकि होना यह चाहिए कि पहले इन भ्रष्टाचारियों को उनके किए गए भ्रष्टाचार के तहत कार्रवाई होनी चाहिए उसके पश्चात ही बकाया राशि की मांग रखनी चाहिए थी।
  • कैम्पा कोष के दुरुपयोग की कहानी कैम्पा के गठन वर्ष 2009 के बाद जब पहली बार कैम्पा कोष के तहत राज्य को राशि आवंटित की गई थी तब से ही वन विभाग में लूट का यह खेल खेला जा रहा है, वर्तमान स्थिति तक में कैम्पा कोष के दुरुपयोग के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो आंकड़े हैरान कर देने वाले प्राप्त होतें हैं। सबसे अधिक आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि वनमंडलाधिकारी, उप-वनमंडलाधिकारी और रेंज अधिकारी तीनों ने मिलजुल कर प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भी भ्रम में रखा और उनके पास तक कई फर्जीवाड़े को पहुंचने तक नहीं दिया गया और आंकड़ों में भी हेराफेरी कर गलत दस्तावेज उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसकी भनक प्रधान मुख्य वन संरक्षक को काफी बाद में लगी, यानी कि इन भ्रष्टाचारियों ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक तक को नहीं बख्शा है। रिकार्डों में भी हेराफेर की संभावना जताई गई है।

-सूत्रों के अनुसार

वनमंडलाधिकारी काफी ऊपर तक पहुंच रखतें हैं जिस कारण से वह इतने बड़े बड़े भ्रष्टाचार करने के बावजूद भी आज तक पूरी तरह सुरक्षित हैं और भविष्य में फिर से कई बड़े भ्रष्टाचार करने की योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जा रही है। सूत्रों की मानें तो इस बार जंगल सफारी के नाम पर जोरदार हेराफेर की जाने की संभावना है और कुछ स्थानों पर सागौन रोपड़ी में भी हेराफेर की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक, कैम्पा कोष के मद से इस बार फिर से तीन नयी लग्ज़री वाहनों की खरीदी करने की भी योजना तैयार की गई है जिसके तहत वन मंत्री, सचिव और वनमंडलाधिकारी इन लग्जरी वाहनों का उपयोग करेंगे। वाहनों में डस्टर नामक चारपहिया वाहन का चयन किया गया है।

इस सबके बावजूद भी 2015 के जुलाई माह तक में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में कोई परिवर्तन नहीं आया था आज भी लूटमारी चालू है, रायपुर सामान्य वन मंडल के वनमंडलाधिकारी अभय श्रीवास्तव की अड़ियलबाज़ी और भर्राशाही निरंतर चालू ही है। भ्रष्टाचार की यह कहानी कोई नई नहीं है बल्कि लगभग पांच वर्षों से लगातार जारी है। वन विभाग की कमान नये मंत्री को मिलने के बाद कुछ हद तक उम्मीदें जागृत हो उठीं हैं कि वनमंडलाधिकारी, उप-वनमंडलाधिकारी, रेंज अधिकारी, क्लर्क और अन्य सभी शासकीय कर्मचारी जो इन भ्रष्टाचारों में सम्मिलित हैं उन पर जांच कराई जाए और सख्त कार्रवाई की जाए, और दोषी पाए जाने वालों से शासन की राशि की वसूली भी की जाए, सारी संपत्ति को कुर्क करने जैसी प्रक्रिया भी अपनायी जाए ताकि ऐसे भ्रष्टाचार करने वालों के लिए यह कारवाई सबक साबित हो जाए और भ्रष्टाचार करने से पहले उनके अंदर इस बात का डर पैदा हो जाए कि गर पकड़े गए तो अंजाम कैसा होगा। जिस दिन ऐसा हो गया समझ लीजिए कि भ्रष्टासुरों पर लगाम कस गई?ज्ञात हो कि भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट आचरण। ऐसा कार्य जो अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज के नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर किया जाता है, भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्टाचार भारत समेत अन्य विकासशील देश में तेजी से फैलता जा रहा है। भ्रष्टाचार के लिए ज्यादातर हम देश के राजनेताओं को ज़िम्मेदार मानते हैं पर सच यह है कि देश का आम नागरिक भी भ्रष्टाचार के विभिन्न स्वरूप में भागीदार हैं। वर्तमान में कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है।गौरतलब हो कि अवैध तरीकों से धन अर्जित करना भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार में व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए देश की संपत्ति का शोषण करता है। यह देश की उन्नति के पथ पर सबसे बड़ा बाधक तत्व है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में दोष निहित होने पर देश में भ्रष्टाचार की मात्रा बढ़ जाती है।

भ्रष्टाचार क्या है?

भ्रष्टाचार एक ऐसा अनैतिक आचरण है, जिसमें व्यक्ति खुद की छोटी इच्छाओं की पूर्ति हेतु देश को संकट में डालने में तनिक भी देर नहीं करता है। देश के भ्रष्ट नेताओं द्वारा किया गया घोटाला ही भ्रष्टाचार नहीं है अपितु एक ग्वाले द्वारा दूध में पानी मिलाना भी भ्रष्टाचार का स्वरूप है।

भ्रष्टाचार के कारण-देश का लचीला कानून

भ्रष्टाचार विकासशील देश की समस्या है, यहां भ्रष्टाचार होने का प्रमुख कारण देश का लचीला कानून है। पैसे के दम पर ज्यादातर भ्रष्टाचारी बाइज्जत बरी हो जाते हैं, अपराधी को दण्ड का भय नहीं होता है।

व्यक्ति का लोभी स्वभाव

लालच और असंतुष्टि एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति को बहुत अधिक नीचे गिरने पर विवश कर देता है। व्यक्ति के मस्तिष्क में सदैव अपने धन को बढ़ाने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है।
आदत – आदत व्यक्ति के व्यक्तित्व में बहुत गहरा प्रभाव डालता है। एक मिलिट्री रिटायर्ड ऑफिसर रिटायरमेंट के बाद भी अपने ट्रेनिंग के दौरान प्राप्त किए अनुशासन को जीवन भर वहन करता है। उसी प्रकार देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से लोगों को भ्रष्टाचार की आदत पड़ गई है।

मनसा

व्यक्ति के दृढ़ निश्चय कर लेने पर कोई भी कार्य कर पाना असंभव नहीं होता वैसे ही भ्रष्टाचार होने का एक प्रमुख कारण व्यक्ति की मनसा (इच्छा) भी है।भ्रष्टाचार देश में लगा वह दीमक है जो अंदर ही अंदर देश को खोखला कर रहा है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना है जो यह दिखाता है व्यक्ति लोभ, असंतुष्टि, आदत और मनसा जैसे विकारों के वजह से कैसे मौके का फायदा उठा सकता है।अपना कार्य ईमानदारी से न करना भ्रष्टाचार है अतः ऐसा व्यक्ति भ्रष्टाचारी है। समाज में आये दिन इसके विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। भ्रष्टाचार के संदर्भ में यह कहना मुझे अनुचित नहीं लगता, वही व्यक्ति भ्रष्ट नहीं हैं जिन्हें भ्रष्टाचार करने का अवसर नहीं मिला।

भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकार :-रिश्वत की लेन-देन

सरकारी काम करने के लिए कार्यालय में चपरासी (प्यून) से लेकर उच्च अधिकारी तक आपसे पैसे लेते हैं। इस काम के लिए उन्हें सरकार से वेतन प्राप्त होता है वह वहां हमारी मदद के लिए हैं। इसके साथ ही देश के नागरिक भी अपना काम जल्दी कराने के लिए उन्हे पैसे देते हैं अतः यह भ्रष्टाचार है।

चुनाव में धांधली

देश के राजनेताओं द्वारा चुनाव में सरेआम लोगों को पैसे, ज़मीन, अनेक उपहार तथा मादक पदार्थ बांटे जाते हैं। यह चुनावी धान्धली असल में भ्रष्टाचार है।
भाई-भतीजावाद – अपने पद और शक्ति का गलत उपयोग कर लोग भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। वह अपने किसी प्रिय जन को उस पद का कार्यभार दे देते हैं जिसके वह लायक नहीं हैं। ऐसे में योग्य व्यक्ति का हक उससे छिन जाता है।

नागरिकों द्वारा टैक्स चोरी

नागरिकों द्वारा टैक्स भुगतान करने हेतु प्रत्येक देश में एक निर्धारित पैमाना तय किया गया है। पर कुछ व्यक्ति सरकार को अपने आय का सही विवरण नहीं देते और टैक्स की चोरी करते हैं। यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में अंकित है।

शिक्षा तथा खेल में घूसखोरी

शिक्षा तथा खेल के क्षेत्र में घूस लेकर लोग मेधावी व योग्य उम्मीदवार को सीटें नहीं देते बल्कि जो उन्हें घूस दे, उन्हें दे देते हैं।इसी प्रकार समाज के अन्य छोटे से बड़े क्षेत्र में भ्रष्टाचार देखा जा सकता है। जैसे राशन में मिलावट, अवैध मकान निर्माण, अस्पताल तथा स्कूल में अत्यधिक फीस आदि। यहां तक की भाषा में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। अजय नावरिया के शब्दों में “मुंशी प्रेमचंद्र की एक प्रसिद्ध कहानी सतगति में लेखक द्वारा कहानी के एक पात्र को दुखी चमार कहा गया है, यह आपत्तिजनक शब्द के साथ भाषा के भ्रष्ट आचरण का प्रमाण है। वहीं दूसरे पात्र को पंडित जी नाम से संबोधित किया जाता है। कहानी के पहले पात्र को “दुखी दलित” भी कहा जा सकता था।“

भ्रष्ट्राचार के परिणाम

समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार देश की उन्नति में सबसे बड़ा बाधक तत्व है। इसके वजह से गरीब और गरीब होता जा रहा है। देश में बेरोजगारी, घूसखोरी, अपराध की मात्रा में दिन-प्रतिदन वृद्धि होती जा रही है यह भ्रष्टाचार के फलस्वरूप है। किसी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारणवश परिणाम यह है की विश्व स्तर पर देश के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते हैं।

Happy Independence Day

अपना छत्तीसगढ़ / अक्षय लहरे / संपादक
Author: अपना छत्तीसगढ़ / अक्षय लहरे / संपादक

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